जुनून हौसला और पागलपन आज भी वही है
थोडा सिरीयस हुआ हूँ सुधरा नही हूँ
Tag: व्यंग्य
ज्यादा कुछ नहीं
ज्यादा कुछ नहीं बदलता उम्र बढने के साथ,
बस बचपन की जिद समझौतों में बदल जाती है…
गैरों का होता है
गैरों का होता है,वो मेरा नही होता,
ये रंग बेवफाई का सुनहरा नही होता…
करते न हम मुहब्ब्त,रहते सुकून से,
अंधेरो ने आज हमको,घेरा नही होता…
जब छोड़ दिया घर को,किस बात से डरना,
यूँ टाट के पैबंद पे पहरा नही होता…
दुनिया से इस तरह हम,धोखा नही खाते,
लोगों के चेहरों पे,ग़र चेहरा नही होता…
जिस दम तेरे
जिस दम तेरे कूचे से हम आन निकलते हैं,
हर गाम पे दहशत से बे-जान निकलते हैं…
एक मुनासिब सा
एक मुनासिब सा नाम रख दो तुम मेरा
रोज जिदंगी पूछती हैं रिश्ता तेरा मेरा…
तीर की तरह
तीर की तरह नुकीली हो गई है,
ज़िन्दगी माचिस की तिली हो गई है.!!
ख़ामोशी छुपाती है
ख़ामोशी छुपाती है ऐब और हुनर दोनों ,
शख्सियत का अंदाज़ा गुफ्तगू से
होता है ..!!
मेरी हर आह को
मेरी हर आह को वाह मिली है यहाँ..
कौन कहता है दर्द बिकता नहीं है..
पूराना क़र्ज़ चुकाने में
पूराना क़र्ज़ चुकाने में ख़र्च कर डाली,
तमाम उम्र कमाने में ख़र्च कर डाली।
वो डोर जिससे हम आसमान छू सकते थे,
पतंग उड़ाने में ख़र्च कर डाली।
तफ़सील से तफ्तीश जब हुई
तफ़सील से तफ्तीश जब हुई मेरी गुमशुदगी की,
मैं टुकड़ा टुकड़ा बरामद हुई उनके ख्यालों में