कांटे वाली तार पे

कांटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टांगे हैं
खून टपकता रहता है और नाली में बह जाता है
क्यूँ इस फ़ौजी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है

वक़्त भरा जाता है

नाप के, वक़्त भरा जाता है,हर रेत घड़ी में
इक तरफ़ ख़ाली हो जब फिर से उल्ट देते हैं उसको

उम्र जब ख़तम हो,क्या मुझ को वो उल्टा नहीं सकता

कच्ची-सी सरहद

मैं रहता इस तरफ़ हूँ यार की दीवार के लेकिन
मेरा साया अभी दीवार के उस पार गिरता है

बड़ी कच्ची-सी सरहद एक अपने जिस्मों-जां की हैं

सामने आए मेरे

सामने आए मेरे, देखा मुझे , बात भी की
मुस्कुराये भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर

कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया