ज़ख्म भले ही अलग अलग हैं,
लेकिन दर्द बराबर है ।
कोई फर्क़ नहीं पड़ता है,
तुम सह लो या मैं सह लूँ ।
Tag: व्यंग्य
तेरे बसरने का
तेरे बसरने का आज मुझे मलाल है
क्योंकि ये गरीब किसान की रोटी का सवाल है
हम दोनों का नाम
लोग आज भी हम दोनों का नाम साथ में लेते हे..
ना जाने ये “शोहरत” है या “बदनामी”
हथेलियों पर मेहँदी
हथेलियों पर मेहँदी का “ज़ोर” ना डालिये,
दब के मर जाएँगी मेरे “नाम” कि लकीरें…
क्यूँ बदलते हो
क्यूँ बदलते हो अपनी फितरत को ए मौसम,
इन्सानों सी।
तुम तो रहते हो रब के पास
फिर कैसे हवा लगी जमाने की।।।
क्या करा देती हैं
यादें भी क्या क्या करा देती हैं…..
कोई शायर हो गया……, कोई
खामोश !!!
हताशा मे डूबी
हताशा मे डूबी माँ के
आंसू जब औलाद पोंछती है..!!
हर कर्ज अदा हो जाता है..ममता धन्य
हो जाती है..!!
नींद भी नीलाम हो
नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार -ए- इश्क में,
किसी को भूल कर सो जाना, आसान नहीं होता !
जाने क्यों गुरुर है
जाने क्यों गुरुर है उसे
हुस्न पर अपने..!!
लगता है उसका…
आधार कार्ड अभी बना नही
देख जिँदगी तू
देख जिँदगी तू हमे रुलाना छोड दे अगर हम खफा हूऐ तो तूझे छोड देँगे…!!!