हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते
Tag: व्यंग्य
Tum samajdhar to ho
Tum samajdhar to ho..
Par jara dewaane bano..
Itna jagoge to..
Khwaab Kahan se dekhogei.
मिला दे कि जुदा हो
मिट्टी में
मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़ियादा मैं तेरा हो नहीं
सकता
खुशी दिल के करीब
“हर खुशी दिल के करीब
नहीं होती,
ज़िंदगी ग़मों से दूर नहीं होती,
इस दोस्ती को संभाल कर
रखना,
क्यूंकि दोस्ती हर किसी को नसीब नहीं होती
मोहब्बत का सागर
वो बोले मोहब्बत का सागर बहुत गहरा है साकी
हम बोले डूबने वाले कभी परवाह नहीं किया करते..
मैंने आंसू को समझाया
मैंने आंसू को समझाया,
भरी महफ़िल में ना आया
करो,
आंसू बोला, तुमको भरी महफ़िल में तन्हा पाते है,
इसीलिए तो
चुपके से चले आते है
अब तो कर दे
अब तो कर दे इजहार तू
मुझसे प्यार का…..
देख अब तो मोहब्बत का महीना भी
आ गया…
अपने हांथो की
जब वो अपने हांथो की
लकीरों में मेरा नाम ढूंढ कर थक गया…
सर झुकाकर बोला, “लकीरें
झूठ बोलती है” तुम सिर्फ मेरी हो.
मदहोश रहता हूँ
इतनी पीता हूँ कि मदहोश रहता हूँ;
सब कुछ समझता हूँ पर खामोश रहता हूँ;
जो लोग करते हैं मुझे
गिराने की कोशिश;
मैं अक्सर उन्ही के साथ रहता हूँ।
गोपियाँ तो बहुत है
मेरे पास गोपियाँ तो बहुत है,
पर मेरा मन मेरी राधा के
सिवा कहीं लगता ही नही