मरने के नाम से जो रखते थे होंठो पर उंगलियाँ
.अफसोस वहीं मेरे दिल के
कातिल निकले
Tag: व्यंग्य
हमने खुशियोँ की तिजोरी
हमने खुशियोँ की तिजोरी उनके हवाले की थी,
लेकिन कमबख्त को मेरी हंसी ही चुरानी थी|
हर रोज़ नयी सी
न तेरी अदा समझ में आती है ना आदत… तू हर रोज़ नयी सी ,1
मैं हर रोज़ वही उलझा सा. .
खारिज़ कर दो
या तो खरीद लो
या खारिज़ कर दो …..ये सहूलियत के हिसाब से किराये पर मत लिया करो मुझे..
लोग बहुत अच्छे होते हैं
लोग बहुत अच्छे होते हैं…,
अगर हमारा वक्त अच्छा हो तो…
चांद कहिए न
उनकी नजाकत देखिए , चांद सा जब कहा तो कहने लगे
चांद कहिए न , ये चांद सा क्या है !!
एक जान के लिए
जान बचा के रखी है एक जान के लिए,
ना जाने इतना प्यार कहा से आया एक अनजान के
लिए..!!
बिच्छु की तरह
यार के लहजे में ज़हर है….. बिच्छु की तरह,
वो मुझे आप तो कहता मगर….. तू की तरह
वो उसके हाथों से लिखे ख़त
वो उसके हाथों से लिखे ख़त और
पुरानी तस्वीरों के दिन ही सही थे
इंतज़ार और ऐतबार क़ाबू में तो थे।
कोई दावत तो उसे दे
कोई दावत तो उसे दे आए जाकर जनाज़े में मेरे शरीक़ होने की
आखिरी सफर में ही सही हमसफ़र बनाने की आरज़ू तो पूरी हो