आज वो अपने होके भी बेगाने लगे ,
मानो हवा के ठन्डे झोके हमे जलाने लगे एक आह पे मेरी गिरते थे जिनके हजारो आंसू ,
आज वो भी मेरे ज़ख्मो पे मुस्कुराने लगे
Tag: व्यंग्य
यूँ तो मुझे किसी के
यूँ तो मुझे किसी के छोड़ जाने का गम नहीं ।
“बस”
कोई ऐसा था, जिससे ये
उम्मीद न थी।।
किसी की भी
तारीफ किसी की करने के लिये “जिगर” चाहिए बुराई तो बिना हुनर की किसी की भी कर सकते हैं ।
दहलीज पर रख दी
जरूरी नहीं की हर बात पर तुम मेरा कहा मानों,
दहलीज पर रख दी है चाहत, आगे तुम जानो..!!
कोई चख ले
ज़हर से ज्यादा खतरनाक है ये मुहब्बत,ज़रा सा कोई चख ले तो मर-मर के जीता है
मैं तो आइना हूँ
बिन बात के ही रूठने की आदत है,
किसी अपने का साथ पाने की चाहत है,
वो खुश रहें, मेरा क्या है,
मैं तो आइना हूँ, मुझे तो टूटने की आदत है
लगने दो आज महफ़िल
लगने दो आज महफ़िल, चलो आज
शायरी की जुबां बहते हैं
…. तुम उठा लाओ “ग़ालिब” की किताब,हम अपना
हाल-ए-दिल कहते हैं
सारी उम्र बस
तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ
ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ
मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी
सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ
तुम्हारी वफा भी
तुम भी अच्छे……तुम्हारी वफा भी अच्छी,
बुरे तो हम हैं…
जिनका दिल नहीं लगता तुम्हारे बिना…..
तुम कुछ भी नही
आखिर गिरते हुये आँसू ने पूछ ही लिए
गिरा दिया मुझे उसके लिए जिसके लिए तुम कुछ भी नही