हिचकियों में वफ़ा को ढूँढ रहा था मैं..!
कमबख्त गुम हो गई…दो घूँट पानी से .. !!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हिचकियों में वफ़ा को ढूँढ रहा था मैं..!
कमबख्त गुम हो गई…दो घूँट पानी से .. !!
बात हुई थी समंदर के किनारे किनारे चलने की..
बातों बातों में निगाहों के समंदर में डूब गए..
अब कहां दुआओं में वो बरकतें,…वो नसीहतें …वो हिदायतें,
अब
तो बस जरूरतों का जुलुस हैं …मतलबों के सलाम हैं”
हमने भी मुआवजे की अर्जी डाली है साहब,
उनकी यादों की बारिश ने काफ़ी नुकसान पहुँचाया है !!
हमीं अकेले नहीं जागते हैं रातों में…
उसे भी नींद बड़ी मुश्किलों से आती है..
हमारे महफिल में लोग बिन बुलाये आते है क्यू,
की यहाँ स्वागत में फूल नहीं दिल बिछाये जाते है|
सजा यह मिली की आँखों से नींदें छीन ली उसने,,
जुर्म यह था कि उसके साथ रहने का ख्वाब देखा था
जरुरी नहीं हर रिश्ता बेवफाई से ही खत्म हो,,,,
कुछ रिश्ते किसी की ख़ुशी के लिए भी खत्म करने पड़तेहै !!
ए चाँद मुबारक तुझे….. कारवां तेरा
मुझसे अब तेरी बंदगी नहीं होती….
“दरिया” बन कर किसी को डुबोना बहुत आसान है…..
मगर “जरिया” बनकर किसी को बचायें तो कोई बात हो…..