सिसकना,भटकना,और फिर थम जाना….
बहुत तकलीफ देता है, खुद ही संभल जाना.
Tag: व्यंग्य
कसूर हर बार
शक से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते..
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता
जब ठुकराने वाले
कितना खुशनुमा होगा वो मेरे इँतज़ार का मंजर भी…
जब ठुकराने वाले मुझे फिर से पाने के लिये आँसु बहायेंगे
अपने इन्तेजार को
किस खत में रखकर भेजूं अपने इन्तेजार को ,
बेजुबां है इश्क़ , ढूँढता हैं खामोशी से तुझे
आदत ज़रा सी
बस यूँ ही लिखता हूँ वजह क्या होगी ..
राहत ज़रा सी आदत ज़रा सी ..
किसकी परवाह है
ये इश्क तो बस एक अफवाह है..
दुनिया में किसको किसकी परवाह है..
तेरे जिस्म में
उठाइये हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़
तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था
बस इस्तमाल होता है
परवाह दिल से की जाती है,
दिमाग से तो बस इस्तमाल होता है |
शायरी की परख
अजीब पैमाना है यहाँ शायरी की परख का…..
जिसका जितना दर्द बुरा, शायरी उतनी ही अच्छी….
कौन दुआएं करता है
रफ़्ता-रफ़्ता मेरी जानिब, मंज़िल बढ़ती आती है,
चुपके-चुपके मेरे हक़ में, कौन दुआएं करता है।