ख्वाहिशों की दुकान पर आँखें मूंद खड़े रहना,
मुश्किल बहुत है….बड़े होकर बड़े रहना
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख्वाहिशों की दुकान पर आँखें मूंद खड़े रहना,
मुश्किल बहुत है….बड़े होकर बड़े रहना
मुहब्बत अगर चेहरा देख कर होती
तो यकीन मानो तुम से कभी नही होती
दाग़ दुनिया ने दिए, ज़ख़्म ज़माने से मिले
हमको तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले|
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे
ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे
अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे….!
हर एक बात के यूँ तो दिए जवाब उस ने
जो ख़ास बात थी हर बार हँस के टाल गया..
बंध जाये किसी से रूह का बंधन,
तो इजहारे-ए मोहब्बत को अल्फाजो को जरूरत नही होती।
मोहब्बत का वो अंदाज़ बड़ा निराला रखते है ,,तोड़ के शाख़ से गुलाब किताब में सुखा कर रखते है
आग भी क्या अजीब चीज़ है…
ख़ामोशी से भी लग जाती है…!!!
दर्द कहां मोहताज़ होता है शब्दों का…?
बस दो बूंद आंसू चाहिए बयां करने के लिए…
मैंने करवट बदल के भी देखा है…
उस तरफ भी तेरी जरुरत है….