रहते हैं साथ-साथ मैं और मेरी तन्हाई
करते हैं राज की बात मैं और मेरी तन्हाई
दिन तो गुजर ही जाता है लोगो की भीड़ में
करते हैं बसर रात में मैं और मेरी तन्हाई !!
Tag: व्यंग्य
रात को जीत तो पाता नहीं
रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है|
उड़ने दो मिट्टी
उड़ने दो मिट्टी,कहाँ तक उड़ेगी,
हवा का साथ छूटेगा, ज़मीं पर आ गिरेगी…!
हम भी दरिया हैं
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है;
जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा।
वो रखती है
वो रखती है खुद को सबसे छुपाकर….
शायद वो भी खुद को अमानत समझती है मेरी….
अर्थ लापता हैं
अर्थ लापता हैं या फिर शायद लफ्ज खो गए हैं…!
रह जाती है मेरी हर बात क्यूँ इरशाद होते होते….!!
तेरा ही जिक्र होता है
तेरा ही जिक्र होता है हर एक अल्फाज में मेरे..
वो भी इस सलीके से कि, कहीं तू बदनाम ना हो जाए..!!
सजदा कहूँ या कहूँ
सजदा कहूँ या कहूँ इसे मोहब्बत
तेरे नाम में आये अक्षर भी
हम मुस्कुरा कर लिखा करते हैं
किसी रोज़ शाम के
किसी रोज़ शाम के वक़्त…
सूरज के आराम के वक़्त…
मिल जाये साथ तेरा…
हाथ में लेके हाथ तेरा…
ऐ खुदा उसके
ऐ खुदा उसके हरेक लम्हे की हिफाजत करना……
मासूम सा चेहरा है उस पगली का उदास कभी मत
करना…