कोई मरता रहा बात करने को..
किसी को परवाह तक नहीं|
Tag: व्यंग्य
कुछ लौग ये सोचकर
कुछ लौग ये सोचकर भी मेरा हाल नहीं पुँछते.. कि यै पागल दिवाना फिर कोई शैर न सुना देँ..
कुछ दिन से
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं…
यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं..
कुछ नाकामयाब रिश्तों में
कुछ नाकामयाब रिश्तों में पैसे नहीं..
बहुत सारी उम्मीदें और वक्त खर्च हो जाते हैं|
हसरत है तेरी
हसरत है तेरी आँख का आंसू बन जाऊं ..
पर तू रोए.. दिल को ये भी तो गंवारा नहीं|
तेरे बाद हम
तेरे बाद हम जिसके होंगे उसका नाम मौत होगा|
तू ऐसा कर
तू ऐसा कर, अपना दर्द मुझे दे-दे….
फिर मैं जानु, दर्द जाने, दुआ जाने, खुदा जाने|
हमने ही सिखाया था
हमने ही सिखाया था उन्हें बाते करना,
उनको आज हमारे लिये ही वक्त नहीं|
कभी संभले तो
कभी संभले तो कभी बिखरते आये हम,
ज़िंदगी के हर मोड़ पर ख़ुद में सिमटते आये हम…
छुपे छुपे से
छुपे छुपे से रहते हैं सरेआम नहीं हुआ करते,
कुछ रिश्ते बस एहसास होते हैं उनके नाम नहीं हुआ करते|