ज़िंदगी हमारी यूँ

ज़िंदगी हमारी यूँ सितम हो गयी;
ख़ुशी ना जाने कहाँ दफ़न हो गयी;
बहुत लिखी खुदा ने लोगों की मोहब्बत;
जब आयी हमारी बारी तो

स्याही ही ख़त्म हो गयी

आईना देख के

आईना देख के तसल्ली

हुई
कोई तो है इस घर मे
जो जानता है हमे

किसी को न पाने से ज़िंदगी

खत्म नहीं हो जाती,
पर किसी को पा के खो देने के बाद कुछ बाकी

नहीं बचता

लत लग गयी है

लत लग गयी है मुझें तो, अब तुम्हारे साथ की..

पर गुनहगार किसको कहूँ, खुद को या तेरी अदाओं को।….

वो खुद ही ना

वो खुद ही ना छुपा शके अपने चेहरे को नकाब मेँ…..,
बेवजह हमारी आँखो पे इल्जाम लगा दिया….!!!

बच्चों की हथेली

बस्ता बचपन और कागज़ छीन कर
तुमने बच्चों की हथेली बेच दी
गाँव में दिखने लगा बाज़ारपन
प्यार सी वो गुड़ की भेली बेच दी

अमीर होती है

बहुत अमीर होती है ये शराब
की बोतलें…

पैसा चाहे जो भी लग जाए पर सारे ग़म ख़रीद
लेतीं है…