माफ़ी चाहता हूँ गुनाहगार हूँ तेरा ऐ दिल…!!
तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं…
Tag: व्यंग्य शायरी
निकाल दिया उसने
निकाल दिया उसने हमें,
अपनी ज़िन्दगी से भीगे कागज़ की तरह,
ना लिखने के काबिल छोड़ा, ना जलने के..!
मेरे इक अश्क़ की
मेरे इक अश्क़ की तलब थी उसको
मैंने बारिश को आँखों में बसा लिया |
कोई था दिल में
कोई था दिल में,जो खो गया है शायद
वरना आईने में अश्क़ इतना धुन्धला ना होता..!!
किन लफ्ज़ों में
किन लफ्ज़ों में बयाँ करूँ मैं एहमियत तेरी..
तेरे बिन अक्सर मैं अधुरा लगता हूँ..
दबे पाँव आती रही
दबे पाँव आती रही यादें सब तुम्हारी,
एक बार भी यादों के संग तुम नहीं आये…
भांप ही लेंगे
भांप ही लेंगे, इशारा सरे महफ़िल जो किया…..!
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं….
अच्छा हैं आँखों पर
अच्छा हैं आँखों पर पलकों का कफ़न हैं..
वर्ना तो इन आँखों में बहुत कुछ दफन हैं.!
वो लोग अपने आप में
वो लोग अपने आप में कितने अज़ीम थे
जो अपने दुश्मनों से भी नफ़रत न कर सके
हर रात मैं लिखूं….
हर रात मैं लिखूं….
ज़रूरी तो नहीं….
कभी-कभी लफ्ज़ भी सोया करते है…