उठाना खुद ही पड़ता है

उठाना खुद ही पड़ता है, थका टुटा बदन अपना…… कि जब तक सांस चलती है कोई कांधा नही देता….

मेरे बस में

मेरे बस में हो तो लहरों को इतना भी हक न दूं, लिखूं नाम तेरा किनारे पर लहरों को छुने तक ना दूं।

खुद से जीतने की जिद है..

खुद से जीतने की जिद है…मुझे खुद को ही हराना है… मै भीड़ नहीं हूँ दुनिया की…मेरे अन्दर एक ज़माना है…

हाथ की लकीरें

हाथ की लकीरें सिर्फ सजावट बयाँ करती है, किस्मत अगर मालूम होती तो मेहनत कौन करता।

इन्तेजार तो अब

इन्तेजार तो अब किसी का भी नहीं है, फिर जाने क्यूँ पलटकर देखने की आदत नहीं गई…

दिल तुम्हारी तरफ

दिल तुम्हारी तरफ कुछ यूँ झुका सा जाता है.. किसी बेइमान बनिए का तराज़ू हो जैसा..

देखेंगे अब जिंदगी

देखेंगे अब जिंदगी चित होगी या पट, हम किस्मत का सिक्का उछाल बैठे हैं।

इस शहर में

इस शहर में मज़दूर जैसा दर-बदर कोई नहीं.. जिसने सबके घर बनाये उसका घर कोई नहीं..

अब इस से बढ़कर

अब इस से बढ़कर क्या हो विरासत फ़कीर की.. बच्चे को अपनी भीख का कटोरा तो दे गया..

ये सगंदिलो की दुनिया है

ये सगंदिलो की दुनिया है,संभलकर चलना गालिब, यहाँ पलकों पर बिठाते है, नजरों से गिराने के लिए…

Exit mobile version