एक नाराज़गी सी है ज़ेहन में ज़रूर,
पर मैं ख़फ़ा किसी से नहीं…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
एक नाराज़गी सी है ज़ेहन में ज़रूर,
पर मैं ख़फ़ा किसी से नहीं…
अरे कितना झूँठ बोलते हो तुम,,,
खुश हो और कह रहे हो मोहब्बत भी की है…
ये सुनकर मेरी नींदें उड़ गयी,,,
कोई मेरा भी सपना देखता है…
एहसास-ए-मोहब्बत की मिठास से मुझे आगाह न कर
ये वो ज़हर है…जो मैं पहले भी पी चुकी हूँ…!!
नब्ज़ में नुकसान बह रहा है
लगता है दिल में
इश्क़
पल रहा है…!!
मेरी मुहब्बत अक्सर ये सवाल करती है…
जिनके दिल ही नहीं उनसे ही दिल लगाते क्यूँ हो…
ताउम्र उल्फ़तें और वो छोटी सी आशिक़ी…
मरने का तरीक़ा है ये ज़िंदा रहने की हसरतें…
दिल में अब कुछ भी नहीं उन की मोहब्बत के सिवा,
सब फ़साने है हक़ीक़त में हक़ीक़त के सिवा ।।
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो,
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो…
कहते है किस्मत ऊपर वाला लिखता है!
फिर उसे क्यों लाता है ज़िन्दगी में जो किस्मत में नही होता