हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है;
जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा।
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वो रखती है
वो रखती है खुद को सबसे छुपाकर….
शायद वो भी खुद को अमानत समझती है मेरी….
अर्थ लापता हैं
अर्थ लापता हैं या फिर शायद लफ्ज खो गए हैं…!
रह जाती है मेरी हर बात क्यूँ इरशाद होते होते….!!
तेरा ही जिक्र होता है
तेरा ही जिक्र होता है हर एक अल्फाज में मेरे..
वो भी इस सलीके से कि, कहीं तू बदनाम ना हो जाए..!!
सजदा कहूँ या कहूँ
सजदा कहूँ या कहूँ इसे मोहब्बत
तेरे नाम में आये अक्षर भी
हम मुस्कुरा कर लिखा करते हैं
किसी रोज़ शाम के
किसी रोज़ शाम के वक़्त…
सूरज के आराम के वक़्त…
मिल जाये साथ तेरा…
हाथ में लेके हाथ तेरा…
ऐ खुदा उसके
ऐ खुदा उसके हरेक लम्हे की हिफाजत करना……
मासूम सा चेहरा है उस पगली का उदास कभी मत
करना…
काश तुम भी
काश तुम भी हो जाओ तुम्हारी यादों की तरह,
ना वक़्त देखो, ना बहाना, बस चले आओ…
मरकर भी तुझको
मरकर भी तुझको देखते रहने के शौक में,
आखें भी हम किसी को अमानत में दे जायेंगे….
फासले कहाँ मोहब्बत
फासले कहाँ मोहब्बत को कम कर पाते हैं,
बिना मुलाकात के भी कई रिश्ते अक्सर साथ निभाते हैं