मेरी नज़र में तो सिर्फ तुम हो, कुछ और मुझको पता नहीं है तुम्हारी महेफिल से उठ रहा हूँ, मगर कहीं रास्ता नहीं है|
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सच बोलता गया
यूं तो भीड़ बहुत हुआ करती थी महफिल में मेरी
फिर मैं सच बोलता गया और लोग उठते गये
मिलने की अजीब शर्त
उसने मिलने की अजीब शर्त रखी…
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गालिब चल के आओ सूखे पत्तों पे,
लेकिन कोई आहट न हो!
देखी है दरार आईने में
देखी है दरार आईने में आज मैने…
पता नही ‘शीशा’ टूटा हुआ था या ‘मै’|
ज़ख़्मों के बावजूद
ज़ख़्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख….तुम हँसे तो हम भी तेरे साथ हँस दिए….!!
पहले तो यूं ही
पहले तो यूं ही गुज़र जाती थी,
मोहब्बत हुई तो रातों का एहसास हुआ !
मुझे उस जगह से
मुझे उस जगह से भी मोहब्बत हो जाती है;
जहाँ बैठ कर एक बार तुम्हें सोच लेता हूँ…
उसकी तनहाई का इलाज
उसकी तनहाई का इलाज नहीं मिलेगा
जिससे किसी का मिजाज नहीं मिलेगा ।
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जीना होगा कुछ तो दुनिया के मुताबिक
अपने हिसाब का तो रिवाज नहीं मिलेगा।
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ख्वाहिशों का नशा, इक उम्र तक ठिक हैं
उम्र निकलने पर कामकाज नहीं मिलेगा।
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सजानी चाहिए, मजबूरियों से भी जिंदगी
जब तक मनचाहा सा साज नहीं मिलेगा।
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आजमा लेना चाहिए जिंदगी को भी वर्ना
आखिरी वक्त सुनाने को राज नहीं मिलेगा।
लोग हमारे बारे में
लोग हमारे बारे में क्या सोचते
है….
ये भी अगर हम सोचेंगे
तो लोग क्या सोचेंगे.?.?.
नफरत के जंगल में
नफरत के जंगल में उसको लगे मोहब्बत की तलब,
और वो प्यास के सेहरा में मांगे मुझे पानी की तरह…