मेरी ज़िन्दगी को जब मैं करीब से देखता हूँ
किसी इमारत को खड़ा गरीब सा देखता हूँ
आइने के सामने तब मैं आइने रखकर
कहीं नहीं के सामने फिर कुछ नहीं देखता हूँ|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरी ज़िन्दगी को जब मैं करीब से देखता हूँ
किसी इमारत को खड़ा गरीब सा देखता हूँ
आइने के सामने तब मैं आइने रखकर
कहीं नहीं के सामने फिर कुछ नहीं देखता हूँ|
नींद तो आने को थी पर दिल पुराने किस्से ले
बैठा
अब खुद को बे-वक़्त सुलाने में कुछ वक़्त लगेगा|
बिना मतलब के दिलासे भी नहीं मिलते यहाँ ,
लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते हैं |
मुझसे नफरत ही करनी है तो,इरादे मजबूत रखना।।
जरा सा भी चुके तो मोहब्बत हो जायेगी|
सारे शोर महफ़िल के दब गए तेरी पाज़ेब की रुनझुन से””!!
इक तेरा आना महफ़िल में सारे हंगामों पे भारी हो गया
आओ एक बार साथ मुस्कुरा लें….
फिर ना जाने ज़िन्दगी कहाँ ले जाये …!!!
मेरी बेजुबां आँखों से गिरे हैं चंद कतरे…
वो समझ सके तो आँसू ,ना समझ सके तो पानी|
मुहब्बत उठ गयी दोनों घरों से….!!
सुना है एक ख़त पकड़ा गया है….!!
जब से तुम्हारी नाम की मिसरी होंठ लगायी है
मीठा सा ग़म है, और मीठी सी तन्हाई है|
सफ़र शुरू कर दिया है मैंने,
बहोत जल्द तुमसे दूर चला जाऊँगा|