मोटी रकम में

मोटी रकम में बिक रहा हूँ
जो नहीं हूँ वो दिख रहा हूँ,
कलम पे है दबाव भारी कि
नायाब कविता लिख रहा हूँ।

ना जाने कैसे

ना जाने कैसे इम्तेहान ले रही है जिदगी,
आजकल, मुक्दर, मोहब्बत और दोस्त
तीनो नाराज रहते है|

मिली है अगर

मिली है अगर जिंदगी तो मिसाल बन कर दिखाइये…
वर्ना इतिहास के पन्ने आजकल रिश्वत देकर भी छपते है|