ज़हर लगते हो तुम मुझे…
जी करता है खा कर मर जाऊ |
Tag: वक्त शायरी
दाग दुशमन से
दाग दुशमन से भी झुककर मिलिए
कुछ अजीब चीज है मिलनसारी|
मोटी रकम में
मोटी रकम में बिक रहा हूँ
जो नहीं हूँ वो दिख रहा हूँ,
कलम पे है दबाव भारी कि
नायाब कविता लिख रहा हूँ।
ना जाने कैसे
ना जाने कैसे इम्तेहान ले रही है जिदगी,
आजकल, मुक्दर, मोहब्बत और दोस्त
तीनो नाराज रहते है|
मिली है अगर
मिली है अगर जिंदगी तो मिसाल बन कर दिखाइये…
वर्ना इतिहास के पन्ने आजकल रिश्वत देकर भी छपते है|
क्यूँ हर बात में
क्यूँ हर बात में कोसते हो तुम लोग नसीब को,
क्या नसीब ने कहा था की मोहब्बत कर लो !!
ढूँढ ही लेता है
ढूँढ ही लेता है मुझे किसी ना किसी बहाने से “दर्द”
वाकिफ़ हो गया है मेरे हर ठिकाने से !
हम ने पूछा आज
हम ने पूछा आज मीठे में
क्या है ?
उसने ऊँगली उठाई और
होंठों पे रख दी..
रस्म-ए-मोहब्बत
हाँ मुझे रस्म-ए-मोहब्बत का सलीक़ा ही नहीं,
जा किसी और का होने की इजाज़त है तुझे।
शब्दो का शोर
शब्दो का शोर तो,
कोई भी सुन् सकता है।
खामोशियो की आहट
सुनो तो कोई अलग बात है।।