छोड़ दिया सबको बिना वजह तंग करना,
जब कोई अपना समझता ही नहीं तो उसे अपनी याद क्या दिलाना !!
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कब लोगों ने
कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके
वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके
ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके
इक तंज़ है कलियों का तबस्सुम भी मगर क्यों
मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके
वैसे तो इरादा नहीं तौबा शिकनी का
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके
क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके
दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके|
हमको ख़ुशी मिल भी गई
हमको ख़ुशी मिल भी गई तो कहा रखेगे हम आँखों में हसरतें है तो दिल में किसी का गम
वो जिसका बच्चा
वो जिसका बच्चा आठों पहर से भूखा हो बता खुदा वो गुनाह न करे तो क्या करे|
मैं अपनी चाहतों का
मैं अपनी चाहतों का हिसाब करने जो बेठ जाऊ तुम तो सिर्फ मेरा याद करना भी ना लोटा सकोगे ….
तुजसे एक सवाल है
एय खुदा …
तुजसे एक सवाल है मेरा …
उसके चहेरे क्यूँ नहीं बदलते ??
जो इन्शान ” बदल ” जाते है …. !!
कोई तो बात हैं
कोई तो बात हैं तेरे दिल मे जो इतनी गहरी हैं कि
तेरी हँसी तेरी आँखों तक नहीं पहुँचती |
रूठना मत कभी
रूठना मत कभी हमसे मना नही पायेंगे…..
तेरी वो कीमत है मेरी जिंदगी में कि शायद हम अदा नहीं कर पायेंगे…
मैं इतनी छोटी कहानी भी
मैं इतनी छोटी कहानी भी न था,
तुम्हें ही जल्दी थी किताब बदलने की|
काश पता चल जाये
काश पता चल जाये उनको
मैं भी उनका एक पता हूँ।।