यादों की कसक

“यादों की कसक…साँसों

की थकन…आँखों में नमी है…,

ज़िन्दगी…तुझमे सब कुछ है बस…“उसकी” कमी है…!”

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है
लगी है

आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए

जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से
नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए

कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है
कितना सच है कभी तजरबा किया जाए

किताबें

यूँ तो बहुत सी हैं मेरे बारे में
कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए

वो थे पापा

जब मम्मी डाँट रहीं थी तो कोई चुपके से
हँसा रहा था,

वो थे पापा. . .

❤ जब मैं सो रहा था
तब कोई चुपके से
सिर पर हाथ
फिरा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ जब मैं सुबह उठा
तो कोई बहुत
थक कर भी
काम पर जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ खुद कड़ी धूप में
रह कर कोई
मुझे ए.सी. में
सुला रहा था

वो थे पापा. . .

❤ सपने तो मेरे थे
पर उन्हें पूरा करने का
रास्ता कोई और
बताऐ जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ मैं तो सिर्फ अपनी
खुशियों में हँसता हूँ,
पर मेरी हँसी
देख कर कोई
अपने गम भुलाऐ
जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ फल खाने की
ज्यादा जरूरत तो उन्हें थी,
पर कोई मुझे
सेब खिलाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ खुश तो मुझे होना चाहिए
कि वो मुझे मिले ,
पर मेरे जन्म लेने की
खुशी कोई और
मनाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ ये दुनिया पैसों से
चलती है पर कोई
सिर्फ मेरे लिए पैसे
कमाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ घर में सब अपना प्यार
दिखाते हैं पर कोई
बिना दिखाऐ भी
इतना प्यार किए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ पेड़ तो अपना फल
खा नही सकते इसलिए
हमें देते हैं…
पर कोई अपना पेट
खाली रखकर भी
मेरा पेट भरे जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ मैं तो नौकरी के लिए
घर से बाहर जाने पर
दुखी था पर
मुझसे भी अधिक
आंसू कोई और
बहाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ मैं अपने “बेटा ”
शब्द को सार्थक बना सका
या नही.. पता नहीं…
पर कोई बिना स्वार्थ के अपने “पिता” शब्द को सार्थक बनाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .