ज़ख्मो पे मुस्कुराने लगे

आज वो अपने होके भी बेगाने लगे ,
मानो हवा के ठन्डे झोके हमे जलाने लगे एक आह पे मेरी गिरते थे जिनके हजारो आंसू ,
आज वो भी मेरे ज़ख्मो पे मुस्कुराने लगे

किसी की भी

तारीफ किसी की करने के लिये “जिगर” चाहिए बुराई तो बिना हुनर की किसी की भी कर सकते हैं ।

कोई चख ले

ज़हर से ज्यादा खतरनाक है ये मुहब्बत,ज़रा सा कोई चख ले तो मर-मर के जीता है

मैं तो आइना हूँ

बिन बात के ही रूठने की आदत है,
किसी अपने का साथ पाने की चाहत है,
वो खुश रहें, मेरा क्या है,
मैं तो आइना हूँ, मुझे तो टूटने की आदत है

लगने दो आज महफ़िल

लगने दो आज महफ़िल, चलो आज
शायरी की जुबां बहते हैं
…. तुम उठा लाओ “ग़ालिब” की किताब,हम अपना
हाल-ए-दिल कहते हैं