काश! मैं ऐसी शायरी लिखूँ तेरी याद में,
तेरी शक्ल दिखाई दे हर अल्फ़ाज़ में.!
Tag: याद
क्या लेना देना ।
सोचते हैं जान अपनी उसे मुफ्त ही दे दें ,
इतने मासूम खरीदार से क्या लेना देना ।
इस क़दर हैरां हुए
है नया कुछ भी नहीं क्यूं इस क़दर हैरां हुए,
साथ चलने को तुम्हारे,अय मियाँ कोई नहीं
इरशाद होते होते
अर्थ लापता हैं या फिर शायद शब्द खो गए हैं,
रह जाती है मेरी हर बात क्यूँ इरशाद होते होते….
जिनसे अक्सर रूठ जाते हैं
जिनसे अक्सर रूठ जाते हैं हम
असल में उन्ही से रिश्ते गहरे होते हैं…
सन्नाटा कहता है
गलियों की उदासी पूछती है, घर का सन्नाटा कहता है…
इस शहर का हर रहने वाला क्यूँ दूसरे शहर में रहता है..!
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है
हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं..
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे..
तसल्ली को कहा था
वो तो बस झूटी तसल्ली को कहा था तुम से
हम तो अपने भी नहीं, ख़ाक तुम्हारे होते
हमारा क़ुसूर निकलेगा
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगाहमारा क़ुसूर निकलेगा
बन के इश्तिहार मिला।
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला, बन के इश्तिहार मिला।