मैं तुझसे अब

मैं तुझसे अब कुछ नहीं मांगता ऐ ख़ुदा,
तेरी देकर छीन लेने की आदत मुझे मंज़ूर नहीं।।

इश्क़ का कैदी

इश्क़ का कैदी बनने का अलग ही मज़ा है,
छुटने को दिल नहीं करता और उलझने में मज़ा आता है।।

अब न वो

अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है,
जैसे दो साए तमन्ना के सराबों में मिलें…

अब्र बरसते तो

अब्र बरसते तो इनायत उस की
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है |
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है |
मसअला जब भी चराग़ों का उठा
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है |
दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ
बात कुछ और हुआ करती है ||