नज़र बन के कुछ इस क़दर मुझको लग जाओ
कोई पीर की फूँक न पूजा न मन्तर काम आये…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
नज़र बन के कुछ इस क़दर मुझको लग जाओ
कोई पीर की फूँक न पूजा न मन्तर काम आये…
उसने जी भर के मुझको चाहा था…,
फ़िर हुआ यूँ कि उसका जी भर गया।
ये फैसला तो शायद वक़्त भी न कर सके
सच कौन बोलता है, अदाकार कौन है।
ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू,
हम किससे करें बात कोई बोलता ही नहीं…
जुड़ना सरल है…
पर
जुड़े रहना कठिन….
भुख लोरी गा गा कर,
.
जमीर को सुलाये रखती हैं…
सिलसिला खत्म क्यों करना जारी रहने दो,
इश्क़ में बाक़ी थोड़ी बहुत उधारी रहने दो…
वफा की बूंद में एक हरारत इश्क की थी…..
मुफलिसी के दिन थे….
हाँ, मुहब्बत बेच दी अपनी….
सांसों में लोबान जलाना आखिर क्यों
पल पल तेरी याद का आना आखिर क्यों…….
कितने फिज़ूल हैं ना हम भी,
देख तुझे याद तक नहीं आते..!!!