जाने क्या था जाने क्या है
जो मुझसे छूट रहा है….
यादें कंकर फेंक रही है
दिल अंदर से टूट रहा है…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जाने क्या था जाने क्या है
जो मुझसे छूट रहा है….
यादें कंकर फेंक रही है
दिल अंदर से टूट रहा है…..
इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले,
और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले|
जब जब सच बोलके देखा मुह पे इंसान के,
हर वक़्त एक नया ही रंग सामने आया ।
कोई कम्बखत उछाल न दे हवा में….
अपने गालों से लग जाने दे.
एक मुठ्ठी गुलाल ही तो हूँ
जरा मुस्कुरा के देखो, दुनिया हँसती नजर आएगी!
वो रुठ कर बोली क्यूं
इतना दर्द लिखते हो,
मैंने मुस्कुरा के कहा..
शायरी कोई कानूनन
जुर्म तो नहीं..!
ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो
कुछ आदतें बुरी सीख लो..
ऐब न हों..
तो लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते
ये सोचकर हमने ख़ुद को बेरंग रखा है,.
ऐ दोस्तों,.
सुना है सादगी ही मोहब्बत की रूह होती है…!!
उसके तेवर समझना भी आसां नहीं
बात औरों की थी, हम निगाहों में थे |
चेहरे को आज तक भी तेरा इंतज़ार है.!
हमने गुलाल और को मलने नहीं दिया..!!