कहे जख्मी दिल

कहे जख्मी दिल
आघात अब कोई सह न सकूँगा
रोने का हिम्मत नही ना ही मुस्करा सकूँगा
ना ही घावो को भर सकूँगा
आघात अब न देना कोई सह न सकूँगा।

अपनी उल्झन में ही

अपनी उल्झन में ही अपनी…
मुश्किलों के हल मिले,

जैसे टेढ़ी मेढ़ी शाखों पर भी..
रसीले फल मिले,

उसके खारेपन में भी कोई तो..
कशिश होगी ज़रूर….

वरना क्यूँ सागर से यूँ…
जा जा के गंगाजल मिले..