खुल सकती हैं रुमाल की गांठें बस ज़रा से जतन से मगर,
लोग कैंचियां चला कर, सारा फ़साना बदल देते हैं.. !!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
खुल सकती हैं रुमाल की गांठें बस ज़रा से जतन से मगर,
लोग कैंचियां चला कर, सारा फ़साना बदल देते हैं.. !!!
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ
गुलाबों को नहीं आया अभी तक इस तरह खिलना..,
सुबह को जिस तरह वो नींद से बे’दार होती है….
जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं….
बहुत मजबूत रिश्ते थे मेरे….
पर बहुत कमजोर लोगों से…..
अलग दुनिया से हटकर भी कोई दुनिया है मुझमें,
फ़क़त रहमत है उसकी और क्या मेरा है मुझमें.
मैं अपनी मौज में बहता रहा हूँ सूख कर भी,
ख़ुदा ही जानता है कौनसा दरिया है मुझमें.
इमारत तो बड़ी है पर कहाँ इसमें रहूँ मैं,
न हो जिसमें घुटन वो कौनसा कमरा है मुझमें.
दिलासों का कोई भी अब असर होता नहीं है,
न जाने कौन है जो चीख़ता रहता है मुझमें.
नहीं बहला सका हूँ ज़ीष्त का देकर खिलौना
कोई अहसास बच्चे की तरह रोता है मुझमें.
सभी बढ़ते हुए क्यों आ रहे हैं मेरी जानिब,
कहाँ जाता है आखि़र कौनसा रस्ता है मुझमें.
थोडा नादान हूँ, कभी कभी नादानी कर जाता हूँ,
किसी का दिल दुखाना मेरी फितरत नही है….
…
हमी से सीखी है
वफ़ा-ऐ-मोहब्बत उसने,
जिससे भी करेगा… कमाल करेगा ।
कौन कहता हे भगवान आते नहीं
तुम मीरा के जेसे बुलाते नहीं
ना मिला सुकून तो खतम ज़िन्दगी कर ली,
नदी ने जाकर समंदर में खुदखुशी कर ली…!!!
सीख जाओ वक्त पर किसी की चाहत की कदर करना…
कहीं कोई थक ना जाये तुम्हें एहसास दिलाते दिलाते..!!