आरज़ू तो पूरी हो

कोई दावत तो उसे दे आए जाकर जनाज़े में मेरे शरीक़ होने की
आखिरी सफर में ही सही हमसफ़र बनाने की आरज़ू तो पूरी हो |

वक़्त गुज़र जायेगा

साथ रहते यूँ ही वक़्त गुज़र जायेगा;
दूर होने के बाद कौन किसे याद आयेगा ,
जी लो ये पल जब हम साथ हैं;
कल क्या पता वक़्त कहाँ ले जायेगा।

अमीर हो जाएँगे..

निकलेगी बारात जब तेरी गली से तो इतनी ..

गोलिया चलाएंगे की तेरे पड़ोसी भी पीतल बेच बेच के अमीर हो जाएँगे..

जब चाहत हो

पाने बाला पा जाता है ,
मेहनत करना रंग लाता है ,
पाने की जब चाहत हो तो,
ताज चलकर खुद आता है ….!!

माँ की इच्छा

माँ की इच्छा

महीने बीत जाते हैं
साल गुजर जाता है
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर
मैं तेरी राह देखती हूँ।

आँचल भीग जाता है
मन खाली खाली रहता है
तू कभी नहीं आता
तेरा मनीआर्डर आता है।

इस बार पैसे न भेज
तू खुद आ जा
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

तेरे पापा थे जब तक
समय ठीक रहा कटते
खुली आँखों से चले गए
तुझे याद करते करते।

अंत तक तुझको हर दिन
बढ़िया बेटा कहते थे
तेरे साहबपन का
गुमान बहुत वो करते थे।

मेरे ह्रदय में अपनी फोटो
आकर तू देख जा
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

अकाल के समय
जन्म तेरा हुआ था
तेरे दूध के लिए
हमने चाय पीना छोड़ा था।

वर्षो तक एक कपड़े को
धो धो कर पहना हमने
पापा ने चिथड़े पहने
पर तुझे स्कूल भेजा हमने।

चाहे तो ये सारी बातें
आसानी से तू भूल जा
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

घर के बर्तन मैं मांजूगी
झाडू पोछा मैं करूंगी
खाना दोनों वक्त का
सबके लिए बना दूँगी।

नाती नातिन की देखभाल
अच्छी तरह करूंगी मैं
घबरा मत, उनकी दादी हूँ
ऐसा नहीं कहूँगी मैं।

तेरे घर की नौकरानी
ही समझ मुझे ले जा
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

आँखें मेरी थक गईं
प्राण अधर में अटका है
तेरे बिना जीवन जीना
अब मुश्किल लगता है।

कैसे मैं तुझे भुला दूँ
तुझसे तो मैं माँ हुई
बता ऐ मेरे कुलभूषण
अनाथ मैं कैसे हुई ?

अब आ जा तू मेरी कब्र पर
एक बार तो माँ कह जा
हो सके तो जाते जाते
वृद्धाश्रम गिराता जा।