रफ्ता रफ्ता उन्हें भूले हैं मुद्दतों में हम..
किश्तों में खुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिये..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रफ्ता रफ्ता उन्हें भूले हैं मुद्दतों में हम..
किश्तों में खुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिये..
ये चांद की आवारगी भी यूंही नहीं है,
कोई है जो इसे दिनभर जला कर गया है..
बड़ी अजीब सी है शहरों की रौशनी,
उजालों के बावजूद चेहरे पहचानना मुश्किल है।
मुल्क़ ने माँगी थी
उजाले की एक किरन..
निज़ाम ने हुक़्म दिया
चलो आग लगा दी जाय..!!
हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए |
मेरे ग़ज़लों में हमेशा, ज़िक्र बस तुम्हारा रहता है…
ये शेर पढ़के देखो कभी, तुम्हे आईने जैसे नज़र आएंगे
शायरी उसी के लबों पर सजती है साहिब..
जिसकी आँखों में इश्क़ रोता हो..
आईना बड़ी शिद्दत से वो अपने पास रखते हैं
जिसमे देखकर अपनी सूरत वो खुद संवरते हैं
दर्पण तो दर्पण है वो सबका अपना प्यारा है
सम्हाल के रखना ये जल्दी टूटकर बिखरते हैं…
तलब नहीं कोई हमारे लिए तड़पे ,
नफरत भी हो तो कहे आगे बढ़के.!!
आग लगाना मेरी फ़ितरत में नहीं..,
पर लोग मेरी सादगी से ही जल जाये…
उस में मेरा क्या क़सूर…!!