हो तू दुनिया में मगर, दुनिया का तलबगार न हो।
सिर्फ बाजार से गुजरे, पर इस से सरोकार न हो
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हो तू दुनिया में मगर, दुनिया का तलबगार न हो।
सिर्फ बाजार से गुजरे, पर इस से सरोकार न हो
थे तो बहुत मेरे भी इस दुनियां में कहने को अपने,
पर जब से हुआ है इश्क हम लावारिस हो गए !!
जा रही हूँ मैं तेरी जिन्दगी से कभी ना फिर लौट के आने को ,
रोक लो अपने एहसासों को जो लिपट रहे मेरे कदमों से संग आने को !
न जाने इन आंखों को किसकी जुस्तजू है
सारी रात देखता रहा घर के दहलीज को !
सहमा सहमा हर इक चेहरा,
मंज़र मंज़र खून में तर..
शहर से जंगल ही अच्छा है,
चल चिड़िया तू अपने घर.!
दिल की गली से तो गुजरे न जाने शक्स कितने पर ,
कोई एक पल कोई दो पल कोई रुका ना उम्र भर के लिए !
तलब उठती है बार-बार तेरे दीदार की;
ना जाने देखते-देखते कब तुम लत बन गये।
ले चल कही दूर मुझे तेरे सिवा जहाँ कोई ना हो.. बाँहो मे सुला लेना मुझको फिर कोई सवेरा ना हो.
शायरी भी एक मीठा जुल्म है
करते रहो या ..या फिर …पढ़ते रहो….!!
नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा,
चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा !!