ज़माना हो गया बिस्मिल, तेरी सीधी निगाहों पे ,
खुदा ना ख्वास्ता, तिरछी नज़र होती, तो क्या होता !!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ज़माना हो गया बिस्मिल, तेरी सीधी निगाहों पे ,
खुदा ना ख्वास्ता, तिरछी नज़र होती, तो क्या होता !!!
उससे खफा होकर भी देखेंगे एक दिन,
कि उसके मनाने का अंदाज़ कैसा है..
अपने लुटने का मुझको रंज नहीं, गम अगर है तो सिर्फ इतना,मेरे किरदार की शराफत से उसने जो फायदा उठाया हैं।
मैं क़तरा हो के भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ
मुझे बचाना समुंदर की ज़िम्मेदारी है|
कभी तो खर्च कर दिया करो..
खुद को मुझ पर…
तसल्ली रहें..
मामूली नही है हम….
मैं शैतान हूँ
कम से कम तब,
जब तुम मेरे सामने भगवान
बनने की कोशिश करो
गैरों से पूछती है तरीके निजात के
अपनों की साजिशों से परेशान जिन्दगी|
ये कैसी कसक बांके मेरे दिल को लगा दी है
मैंने रो रो कर तुम्हे हंसने की दुआ दी है …
मैं इस तलाश में बरसों से सो नहीं पाया
के मेरी नींद न जाने कहाँ पे रखी है|
तुम बदले तो मजबूरियाँ थी…
हम बदले तो बेवफ़ा हो गए…!