कौन कमबख़्त चाहता है सुधर जाना
हमारी ख़्वाहिश तुम्हारी लतों में शुमार हो जाना !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कौन कमबख़्त चाहता है सुधर जाना
हमारी ख़्वाहिश तुम्हारी लतों में शुमार हो जाना !
ये मशवरा है कि पत्थर बना के रख दिल को
ये आईना ही रहा तो जरूर टूटेगा
दिल दुखाती थी जो पहले अब रास आने लगी है
अब उदासी रफ़्ता-रफ़्ता दिल को भाने लगी है…!!
ये चार दिवारें कमबख्त….
खुद को घर समझ बैठीं हैं ….
ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए
ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है
न जाने किस हुनर को शायरी कहते हो तुम,
हम तो वो लिखते हैं जो तुम्हें कह नहीं पाते।
ज़रा ज़रा सी बात पर,
तकरार करने लगे हो…
लगता है मुझसे बेइंतिहा,
प्यार करने लगे हो…
समझनी है जिंदगी
तो पीछे देखो,
जीनी है जिंदगी को
तो आगे देखो …..!!
तुम फिर आ गये मेरी शायरी में…क्या करूँ…
न मुझसे शायरी दूर जाती है न मेरी शायरी से तुम..
तुम सावन का महीना हो
मै तुझपे छाया हूँ झूले की तरह|