बेटियों का बाप भी कितना मजबूर होता है,
शहर के आवारा गिद्धों का कुछ बिगाड नही सकता….
उसे अपने परियों के पंख ही कुतरने पड़ते है…!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बेटियों का बाप भी कितना मजबूर होता है,
शहर के आवारा गिद्धों का कुछ बिगाड नही सकता….
उसे अपने परियों के पंख ही कुतरने पड़ते है…!!!
अपनी खुशियों की चाबी किसी को न देना,
दाेस्त
लोग अक्सर दूसरों का सामान खो देते हैं..!!
वाह रे दोगले समाज क्या तेरी सोच हैं…
पैसे वाले की बेटी..
रात के आठ बजे कही जाए..
तो “चलन” है…!
गरीब की बेटी…
अगर उसी वक्त पर डयूटी से आए..
तो “बदचलन” है..!!
दुनियाँ की हर चीज ठोकर लगने से टूट जाया करती है दोस्तो…
एक ” कामयाबी ही है जो ठोकर खा के ही मिलती है …!!
कर्मो से ही पहेचान होती है इंसानो की…
महेंगे ‘कपडे’ तो,’पुतले’ भी पहनते है दुकानों में !!..
माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती…
यहाँ आदमी आदमी से जलता है…!!
ख्वाब जो सलीके से तह कर रखे थे,
मैने दिल की आलमारी में उनमे सिलवटें पड़ने लगी हैं,
शायद इसलिये क्यूंकि इन पर
पापा के डाँट की इस्त्री नहीं चलती अब…!!!
भले ही मैं अपने पिताजी की कुर्सी पर बेठ जाता हूँ ,
पर आज भी अनुभव के मामले मे मैं उनके घुटनो तक ही आता हूँ ।