रिश्तों में इतनी बेरुख़ी भी अच्छी नहीं हुज़ूर..
देखना कहीं मनाने वाला ही ना रूठ जाए तुमसे..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रिश्तों में इतनी बेरुख़ी भी अच्छी नहीं हुज़ूर..
देखना कहीं मनाने वाला ही ना रूठ जाए तुमसे..!!
वो बचपने की नींद तो अब ख़्वाब हो गई
क्या उम्र थी कि रात हुई और सो गए ।
उनका कन्धा ना जाने ईश्वर ने कितना
मजबूत बनाया है,
मेरी ख्वाहिशों का बोझ उठाते हुए माँ
ने कभी उफ़ तक नहीं किया….
देखा जो तीर खा के, दुश्मनों की तरफ़..
अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गई..
दर दर भटक रही थी पर दर नहीं मिला,
उस माँ के चार बेटे हैं पर रहने को घर नहीं मिला।
बचपन में जब चाहा हँस लेते थे,
जहाँ
चाहा रो सकते थे.
अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए,
अश्कों को तनहाई ..
इस बनावटी दुनिया में
कुछ सीधा सच्चा रहने दो,
तन वयस्क हो जाए चाहे, दिल तो बच्चा रहने दो,
नियम कायदो
की भट्टी में पकी तो जल्दी चटकेगी,
मन की मिट्टी को थोडा सा तो गीला, कच्चा रहने दो|
तरस जाओगे हमारे लबों से सुनने को एक एक लफ़्ज़,
प्यार की बात तो क्या हम शिकायत भी नहीं करेंगे
ये है ज़िन्दगी किसी के घर आज नई कार आई
और किसी के घर मां की दवाई उधार आई..
फिर से बचपन लौट रहा है शायद,
जब भी नाराज होता हूँ खाना छोड़ देता हूँ.!!