अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ,
जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ,
जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला…..
लगती थी शायरो की महफ़िल जहा
सुना है वो जगह अब सुनसान होगयी
ये चांद की आवारगी भी यूंही नहीं है,
कोई है जो इसे दिनभर जला कर गया है..
इश्क़ तो बेपनाह हुआ…कसम से..
गलती बस ये हुई कि……..हुआ तुमसे
खामोश रहने दो लफ़्ज़ों को, आँखों को बयाँ करने दो हकीकत,
अश्क जब निकलेंगे झील के, मुक़द्दर से जल जायेंगे अफसाने..
परिन्दों की फिदरत से आये थे वो मेरे दिल में ,
जरा पंख निकल आये तो आशियाना छोड़ दिया ..
कल बड़ा शोर था मयखाने में,
बहस छिड़ी थी जाम कौन सा बेहतरीन है,
हमने तेरे होठों का ज़िक्र किया,
और बहस खतम हुयी..
मेरे ग़ज़लों में हमेशा, ज़िक्र बस तुम्हारा रहता है…
ये शेर पढ़के देखो कभी, तुम्हे आईने जैसे नज़र आएंगे
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है ….
तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …
तलब नहीं कोई हमारे लिए तड़पे ,
नफरत भी हो तो कहे आगे बढ़के.!!