ज़िंदगी अब नही सवरेगी शायद,
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बड़ा तजुर्बेकार था उजाड़ने वाला..!!
Tag: दर्द शायरी
बदलने को हम भी
बदलने को हम भी बदल जाते…
फिर अपने आप को क्या मुंह दिखाते |
अनजाने शहर में
अनजाने शहर में अपने मिलते है कहाँ
डाली से गिरकर फूल फिर खिलते है कहाँ . . .
आसमान को छूने को रोज जो निकला करे
पिँजरे में कैद पंछी फिर उड़ते है कहाँ . . .
दर्द मिलता है अक्सर अपनो से बिछड़कर
टूट कर आईने भला फिर जुड़ते है कहाँ . . . .
ले जाते है रास्ते जिंदगी के दूर बहुत
मील के पत्थर जमे फिर हिलते है कहाँ . . .
दिल कहाँ कह पाता है औरों को अपनी भला
जख्म हुए गहरे गर फिर भरते है कहाँ . . . .
ले चल खुदा फिर मुझे मेरे शहर की ओर
जीने के अवसर भला फिर मिलते है कहाँ . .
झूठ बोलने का रियाज़
झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ, सुबह और शाम में;
सच बोलने की अदा ने हमसे कई अज़ीज़ छीन लिए।
दुनिया में बहुत कम
दुनिया में बहुत कम लोग,
आपका दुःख समझते है~
बाकी तो सब कहानी सुनना
पसंद करते है|
तुमसे मिलने की तलब
तुमसे मिलने की तलब, कुछ इस तरह लगी है “साहब”
जिस तरह से कोई मयकश, मयखाने की तलाश करता है !!
ख़ुशी दे या गम
ख़ुशी दे या गम दे दे
-मग़र देते रहा कर-
तू उम्मीद है मेरी…
तेरी हर चीज़ अच्छी लगती है…
आज फिर बैठे है
आज फिर बैठे है इक हिचकी के इंतज़ार में…!
पता तो चले वो हमें कब याद करते है …
मैं क्यों कहूं उसे
मैं क्यों कहूं उसे, कि मुझसे बात कर,
क्या उसे नहीं मालूम मेरा दिल नहीं लगता उसके बिना !
कौन शरमा रहा है
कौन शरमा रहा है ‘आज’ यूँ हमें फ़ुर्सत में याद कर के………
हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं, पर हिच-किचा रही हैं….