पापा आपके नाम से ही जाना जाता हूँ
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Tag: जिंदगी शायरी
आवाज़ बर्तनों की
आवाज़ बर्तनों की घर में दबी रहे,
बाहर जो सुनने वाले हैं, शैतान हैं बहुत….
आए थे मीर ख़्वाब में
आए थे मीर ख़्वाब में कल डांट कर गए,
क्या शायरी के नाम पर कुछ भी नहीं रहा….
ऐसी भी अदालत है
ऐसी भी अदालत है जो रूह परखती है,
महदूद नहीं रहती वो सिर्फ़ बयानों तक
ग़नीमत है नगर वालों
ग़नीमत है नगर वालों लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गांव में अक्सर, दरोगा लूट जाता है|
प्यार की फितरत भी
प्यार की फितरत भी अजीब है यारा..
बस जो रुलाता है उसी के गले लग कर रोने को दिल चाहता है
आपके ही नाम से
आपके ही नाम से जाना जाता हूँ “पापा”.
भला इस से बड़ी शोहरत मेरे लिए क्या होगी…
सहम उठते हैं
सहम उठते हैं कच्चे मकान पानी के खौफ़ से, महलों की आरजू ये है कि बरसात तेज हो।
मोहब्बत का कफ़न दे
मोहब्बत का कफ़न दे दो तो शायद फिर जनम ले ले !!
अभी इंसानियत की लाश चौराहे पे रक्खी है !!
फिर यूँ हुआ कि
फिर यूँ हुआ कि सब्र की उँगली पकड़ कर हम..
इतना चले कि रास्ते हैरान हो गए..