आते हैं मैख़ाने में तो कलम टूट कर लिखती है,
मुझ से बडी काफिर तो मेरी कलम हो रक्खी है…
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अब तो मुझ को
अब तो मुझ को मेरे हाल में जीने दो
अब तो मैंने तुम पे मरना छोड़ दिया|
वो जो समझते थे
वो जो समझते थे हम उनके रहम-ओ-करम पर हैं,
कल बात चली तो उनको करमों पर हमें रहम आ गया…
जाने कितनी रातों की
जाने कितनी रातों की नीदें ले गया वो…
जो पल भर मौहब्बत जताने आया था|
बात ऊँची थी
बात ऊँची थी मगर बात ज़रा कम आँकी
उस ने जज़्बात की औक़ात ज़रा कम आँकी
वो फरिश्ता मुझे कह कर ज़लील करता रहा
मैं हूँ इन्सान, मेरी ज़ात ज़रा कम आँकी
उलझते-सुलझते हुए
उलझते-सुलझते हुए ज़िन्दगी के ये लम्हें……
और खुशबू बिखेरता हुआ …तेरा महकता सा ख़्याल|
मेरे बस मे नहीं
मेरे बस मे नहीं अब हाल-ए-दिल बयां करना,
बस ये समझ लो, लफ़्ज़ कम मोहब्बत ज्यादा हैं|
कभी हमसे भी
कभी हमसे भी, पूछ लिया करो हाल-ए -दिल..
कभी हम भी तो कह सकें, दुआ है आपकी |
किसी रोज फिर से
किसी रोज फिर से रोशन होगी जिंन्दगी मेरी क्योकि,
इंन्तजार सुबह का नही किसी के लोट आने का है|
कितने मज़बूर हैं
कितने मज़बूर हैं हम तकदीर के हाथो,
ना तुम्हे पाने की औकात रखतेँ हैँ, और ना तुम्हे खोने का हौसला|