अभी दिन की कशमक़श से निकल भी
न पाये थे,
जाने कहाँ से फिर ये शाम आ गई
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अभी दिन की कशमक़श से निकल भी
न पाये थे,
जाने कहाँ से फिर ये शाम आ गई
गुलाम हुआ है इंसान कुछ इस कदर
रिश्ते मिलने को तरसते है …..
आये हो आँखों में तो कुछ देर तो ठहर जाओ,
एक उम्र लग जाती है एक ख्वाब सजाने में.
कोशिश तो होती है की तेरी हर ख्वाहिश पूरी करूँ,
पर डर लगता है की तू ख्वाहिश में मुझसे जुदाई ना माँग ले !!
आज फिर देखा है मुझे किसी ने मोहोब्बत भरी निगाहों से,
और एक बार फिर तेरी ख़ातिर मैंने अपनी निगाहें झुका ली
इश्क का धंदा ही बंद कर दिया साहीब
मुनाफे में जेब जले और घाटे में दिल
तुमसे मोहब्बत की होती तो शायद तुम्हें भुला भी देते,
इबादत की है, मरते दम तक सजदे करेंगे..
अजीब तरह से गुजर रही है जिंदगी,
सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ और मिला कुछ !!
अजीब तरह से गुजर रही है जिंदगी,
सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ और मिला कुछ !!
उनका इल्ज़ाम लगाने का अंदाज ही कुछ गज़ब का था,
हमने खुद अपने ही ख़िलाफ गवाही दे दी|