मेरी इन चढ़ी आँखों को ज़रा नम कर दे,
ऐ मर्ज़ इस तकलीफ को ज़रा कम कर दे…!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरी इन चढ़ी आँखों को ज़रा नम कर दे,
ऐ मर्ज़ इस तकलीफ को ज़रा कम कर दे…!!
हम तो बदनाम हुए कुछ इस कदर की पानी भी पियें तो लोग शराब कहते हैं.
कुछ लौग ये सोचकर भी मेरा हाल नहीं पुँछते…
कि यै पागल दिवाना फिर कोई शैर न सुना देँ !!
जिस शहर में तुम्हे मकान कम और शमशान ज्यादा मिले…
समझ लेना वहा किसी ने हम से आँख मिलाने की गलती की थी….!!
मैंने पूछा एक पल में जान कैसे निकलती है, उसने चलते चलते मेरा हाथ छोड़ दिया..
आज टूटा एक तारा देखा, बिलकुल मेरे जैसा था। चाँद को कोई फर्क नहीं पड़ा, बिलकुल तेरे जैसा था।।
तुम वादा करो आखरी दीदार करने आओगे, हम मौत को भी इंतजार करवाएँगे तेरी ख़ातिर,
अपनी तस्वीर को रख कर तेरी तस्वीर के साथ…
मैंने एक उम्र गुज़ारी बड़ी तदबीर के साथ…
ज़रूरी तो नहीं के शायरी वो ही करे जो इश्क में हो, ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल दिया करती है…
छोङो ना यार , क्या रखा है सुनने और सुनाने मेँ किसी ने कसर नहीँ छोङी दिल दुखाने मेँ ..