चेहरे गुलाब नहीं होते

जाने क्यूँ अब शर्म, से चेहरे गुलाब नहीं होते।
जाने क्यूँ अब, मस्त मौला मिजाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।
जाने क्यूँ अब चेहरे, खुली किताब नहीं होते।

तारीफ़ करें खुदा

औकात क्या जो लिखूं नात आका की शान में।
खुद तारीफ़ करें खुदा मुस्तफ़ा की कुरान में।
और कीड़े पड़ेंगे देखना तुम उसकी ज़बान में।
गुस्ताख़ी करता हैं जो मेरे आका की शान मे।

जिन्दगी की जेब

बार बार रफू करता रहता हूँ
जिन्दगी की जेब…

कम्बखत फिर भी निकल जाते हैं
खुशियों के कुछ लम्हें…

ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही
ख़्वाहिशों का है…..

ना तो किसी को गम चाहिए और,
ना ही किसी को कम चाहिए….!!!