साकी को गिला है की उसकी बिकती नहीं शराब..
और एक तेरी आँखें है की होश में आने नहीं देती.. .!”
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
साकी को गिला है की उसकी बिकती नहीं शराब..
और एक तेरी आँखें है की होश में आने नहीं देती.. .!”
ये क्यों कहे दिन आजकल अपने खराब हैं,
काटों से घिर गये हैं, समझ लो गुलाब हैं।
ग़ुरूर उनको भी है, ग़ुरूर हमको भी..
बस इसी जंग को जीतने में हम दोनों हार गये..
अपने ही अपनों से करते है अपनेपन की अभिलाषा…
पर अपनों ने ही बदल रखी है, अपनेपन की परिभाषा !!
बे वजह ही सही,
…
पर ज़िंदगी जीने की एक वजह हो तुम !!
कर रहा हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ…. की मंजिल भी मिलेगी … सब आज़माइशों के बाद…
फासलें इस कदर हैं आज रिश्तों में,
जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में
बहुत मुश्किल से करता हूँ तेरी यादों का कारोबार..
मुनाफा कम ही है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है..
हज़ारों मिठाइयाँ चखी हैं मैंने
लेकिन ख़ुशी के आंसू से मीठा कुछ भी नहीं..
हम लबों से कह ना पाये,
उनसे हाल – ए –दिल कभी,
और वो समझे नही यह
ख़ामोशी क्या चीज है..