सरेआम न सही फिर भी रंजिश सी निभाते है..
किसी के कहने से आते किसी के कहने से चले जाते..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सरेआम न सही फिर भी रंजिश सी निभाते है..
किसी के कहने से आते किसी के कहने से चले जाते..
बहुत आसाँ हैं आदमी का क़त्ल मेरे मुल्क में,
सियासी रंजिश का नाम लेकर घर जला डालो…..
कितने गम दिये मैंने,
कितनी खुशी दी तुमने,
मार्च का महीना आ गया है
आ तू भी हिसाब कर ले…
मेरी ख़ामोशी की ख्वाहिश भी तुम,
मेरी मोहब्बत की रंजिश भी तुम….
किस्सा बना दिया एक झटके में उसने मुझे,
जो कल तक मुझे अपना हिस्सा बताता था !!
भूलना भुलाना दिमाग़ का काम है साहिब….
आप दिल में रहते हो….बेफिक्र हो जाओ….!!
निभाते नही है..लोग आजकल..!
वरना.
इंसानियत से बड़ा रिश्ता कौन सा है..
एक अरसा गुजर गया तुम बिन
फिर तेरी यादे क्यों नहीं गुजर जाती इस दिल से
जो जरा किसी ने छेड़ा तो छलक पड़ेंगे आँसू..
कोई मुझसे ये ना पूछें मेरा दिल उदास क्यूँ है..
हर शख्श नहीं होता अपने चेहरे की तरह,
हर इंसान की हकिकत उसके लहजे बताते है..