रहता हूं किराये के घर में

रहता हूं किराये के घर में…
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं….
मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी…
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं….
जल जायेगा ये मेरा घर इक दिन…
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं….
खुद के सहारे मैं श्मशान तक भी ना जा सकूंगा…
इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ।

गुज़र गया आज का दिन भी

गुज़र गया आज का दिन भी
तमाम ख्वाहिशे लेकर..

साँसों ने शरीर का दामन ना छोड़ा
तो कल फिर मिलेंगे..
गुज़र गया आज का दिन भी
तमाम ख्वाहिशे लेकर..

साँसों ने शरीर का दामन ना छोड़ा
तो कल फिर मिलेंगे..

वाह रे दोगले समाज

वाह रे दोगले समाज क्या तेरी सोच हैं…

पैसे वाले की बेटी..

रात के आठ बजे कही जाए..
तो “चलन” है…!

गरीब की बेटी…

अगर उसी वक्त पर डयूटी से आए..
तो “बदचलन” है..!!