नसीहत सभी देते हैं गम को भुलाने की,
बताता वजह कोई नहीं मुस्कराने की…
Tag: शायरी
गले मिलने को
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं,
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं…
गैरों का होता है
गैरों का होता है,वो मेरा नही होता,
ये रंग बेवफाई का सुनहरा नही होता…
करते न हम मुहब्ब्त,रहते सुकून से,
अंधेरो ने आज हमको,घेरा नही होता…
जब छोड़ दिया घर को,किस बात से डरना,
यूँ टाट के पैबंद पे पहरा नही होता…
दुनिया से इस तरह हम,धोखा नही खाते,
लोगों के चेहरों पे,ग़र चेहरा नही होता…
लाजवाब कर दिया
लाजवाब कर दिया करते हैं वो मुझे अक्सर..
जब तैयार होकर कहते हैं; कि कुछ कहो अब मेरी तारीफ़ में !
हज़ार दुख मुझे देना
हज़ार दुख मुझे देना, मगर ख़्याल रहे
मेरे ख़ुदा ! मेरा हौंसला बहाल रहे ..।
जिस दम तेरे
जिस दम तेरे कूचे से हम आन निकलते हैं,
हर गाम पे दहशत से बे-जान निकलते हैं…
एक मुनासिब सा
एक मुनासिब सा नाम रख दो तुम मेरा
रोज जिदंगी पूछती हैं रिश्ता तेरा मेरा…
अपनी तन्हाईयों को
अपनी तन्हाईयों को मैं यूँ दूर कर लेता हूँ,
अपनी परछाइयों से ही गुफ्तगू कर लेता हूँ।
इस भीड़ में किससे करूँ मैं दिल की बात
अपने मन के अंदर ही कस्तूरी ढूँढ लेता हूँ।
तेरी तकदीर से क्योंकर भला मैं रशक करूँ
अपने हाथों में भी कुछ लकीरें उकेर लेता हूँ।
हाथ आ जाती है मेरे सारे जहाँ की खुशियाँ
जो उसके होठों पे मैं मुस्कुराहट पा लेता हूँ ।
तोहमतें किसी पर क्योंकर हो रस्ता बदलने का
अक्सर सफर में मैं भी तो कारवाँ बदल लेता हूँ।
ख्वाहिश अगर थी मंजिल तक साथ निभाने की
फिर क्यूँ जिन्दगी की मजबूरियाँ ढूँढ लेता हूँ।
कभी रौनक-ए-बज्म में शुमार थी मेरी भी गज़ल
अब दरख्तों से रूबरू हो मैं गीत गुनगुना लेता हूँ।
बड़ी आरजू थी तेरी महफिल में फरियाद करूँ
मिलते ही उनसे ‘आहट’ अल्फाज़ बदल लेता हूँ।
वक्त सिखा देता है
वक्त सिखा देता है
इंसान को फलसफा जिंदगी का
फिर तो नसीब क्या
लकीर क्या और तकदीर क्या ….
मिलना तो खैर उसको
मिलना तो खैर उसको नसीबों की बात है,
देखे हुये भी उसको…..ज़माना गुज़र गया.!!