ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा,
ये जो कह दूं के आप पर मरता हूं मैं।।
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रात हुई है
रात हुई है चाँद ज़मीं पर हौले-हौले उतरा है…..!!
तुम भी आ जाते तो सारा नूर मुकम्मल हो जाता…..!!
शाख़ पर रह कर
शाख़ पर रह कर कहाँ मुमकिन था मेरा ये सफ़र,
अब हवा ने अपने हाथों में सँभाला है मुझे…
शिकवा तकदीर का
शिकवा तकदीर का, ना शिकायत अच्छी,
वो जिस हाल में रखे, वही ज़िंदगी अच्छी
मैं रुठा जो
मैं रुठा जो तुमसे तुमने हमें मनाया भी नहीं ,
अपनी मोहब्बत का कुछ हक जताया भी नहीं !!
तौबा तो कर चुके हैं
मुहब्बत से तौबा तो
कर चुके हैं मगर
थोडा जहर ला के दे दो आज
तबियत उदास है|
कोशिश करता हूँ
कोशिश करता हूँ लिखने की,तुम्हारी मुस्कान लिखी नहीं जाती..।
मैं तो अदना सा शायर हूँ, ये दास्तान लिखी नहीं जाती..।
अभी दिन की कशमक़श
अभी दिन की कशमक़श से निकल भी
न पाये थे,
जाने कहाँ से फिर ये शाम आ गई
झूठ बोलने का रियाज़
झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ, सुबह और शाम में; सच बोलने की अदा ने हमसे कई अज़ीज़ छीन लिए।
जिस से मोहब्बत की
जिस से मोहब्बत की जाए
उस से मुक़ाबला नही किया जाता….