हम तो फूलों की तरह अपनी आदत से बेबस हैं।
तोडने वाले को भी खुशबू की सजा देते हैं।
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तनहाई से नही
तनहाई से नही …. शिकायत तो मुझे उस भीड से हैं …
जो तेरी यादो को मिटाने कि कोशिश में होती हैं …..
रंग कितने अजीब है
तकदीर के रंग कितने अजीब है,
अनजाने रिश्ते है फिर भी हम
सब कितने करीब हैं !
घर ढूंढ़ता है
कोई छाँव, तो कोई शहर ढूंढ़ता है
मुसाफिर हमेशा ,एक घर ढूंढ़ता है।।
बेताब है जो, सुर्ख़ियों में आने को
वो अक्सर अपनी, खबर ढूंढ़ता है।।
हथेली पर रखकर, नसीब अपना
क्यूँ हर शख्स , मुकद्दर ढूंढ़ता है ।।
जलने के , किस शौक में पतंगा
चिरागों को जैसे, रातभर ढूंढ़ता है।।
उन्हें आदत नहीं,इन इमारतों की
ये परिंदा तो ,कोई वृक्ष ढूंढ़ता है।।
अजीब फ़ितरत है,उस समुंदर की
जो टकराने के लिए,पत्थर ढूंढ़ता है
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खुदा से मोहब्बत है
तुमसे नहीं तेरे अंदर बैठे खुदा से मोहब्बत है मुझे,
तू तो फ़क़त एक ज़रिया है मेरी इबादत का!
मौका दे दे
गालिब ने भी क्या खूब लिखा है…
दोस्तों के साथ जी लेने का
मौका दे दे ऐ खुदा…
तेरे साथ तो मरने के बाद भी
रह लेंगें ।
चुटकियों में ऊड़ाया
मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा
ये क्या कि चुटकियों में ऊड़ाया गया मुझे
दिलों में नफ़रत
क्या मिलेगा दिलों में नफ़रत रख कर
बड़ी मुख्तसर सी ज़िंदगी है मुस्कुरा के मिला करो|
मुझको मेरे वजूद
मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिए ,
बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ, बेइन्तहा हूँ मैं …!!
कहीं इश्क़ ने
वो जो दो पल थे
तेरी और मेरी मुस्कान के बीच
बस वहीँ कहीं
इश्क़ ने जगह बना ली.?