अब गिला क्या करना ..उनकी बेरुखी का ..
दिल ही तो था भर गया होगा …
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और थोड़ा सा
और थोड़ा सा बिखर जाऊँ ..यही ठानी है….!!!
ज़िंदगी…!!! मैं ने अभी हार कहाँ मानी है….
वों आजाद जुल्फें
वों आजाद जुल्फें छू रहीं उनके लबों को…
और हम खफा हो बैठे हवाओं से..
दुनिया से बेखबर
दुनिया से बेखबर
चल कही दूर निकल जाये
मेरी मुलाक़ात तुझसे
मेरी मुलाक़ात तुझसे अब तक अधूरी है,
तू पास ही है मेरे, फिर क्यों ये दूरी है….
शीशा रहे बगल में
शीशा रहे बगल में, जामे शराब लब पर,
साकी यही जाम है, दो दिन की जिंदगानी का…
वो देखें इधर तो
वो देखें इधर तो उनकी इनायत, ना देखें तो रोना क्या,
जो दिल गैर का हो, उसका होना क्या, ना होना क्या…
अब तो अपनी परछाईं
अब तो अपनी परछाईं भी ये कहने लगी है ,
मैं तेरा साथ दूँगी सिर्फ उजालों में !!
अधूरेपन का मसला
अधूरेपन का मसला ज़िंदगी भर हल नहीं होता…
कहीं आँखें नहीं होतीं, कहीं काजल नहीं होता…
ग़म मिलते हैं
ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी…
ये बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया…