अब्र बरसते तो इनायत उस की
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है |
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है |
मसअला जब भी चराग़ों का उठा
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है |
दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ
बात कुछ और हुआ करती है ||
Tag: शर्म शायरी
सोचो तो सिलवटों से
सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूह,
देखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में…
ढूंढ उजड़े हुए
ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
ये खज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिले…
तेरे श्रृंगार मे
तेरे श्रृंगार मे शामिल हो मेरा भी हिस्सा,
तेरे चेहरे पर मैं भी कहीँ तिल हो जाऊँ.
मुस्कान को महफ़िल
मुस्कान को
महफ़िल चाहिये
औऱ
आँसू ढूंढते हैँ तन्हाई..
दुनिया के बाज़ार में
सब को
वफ़ा चाहिये..
नहीँ चाहता है कोई वेबफाई..
चले थे
सकूँ ढूँढने
उल्टा चैन भी खो बैठे हैँ..
कभी सोया करते थे
जो बेफ़िक्र होकर …
इश्क़ मेँ क्या डूबे
अब आँखों से नींद को भी धो बैठे हैँ..
जुस्तुजू आज भी
पा सकेंगे न उम्र भर जिस को,
जुस्तुजू आज भी उसी की है…
ज़रा अल्फ़ाज़ के
ज़रा अल्फ़ाज़ के नाख़ून तराशों
बहुत चुभते है…….
जब नाराज़गी से बातें करती हो….!!
मोहब्बत के रास्ते
मोहब्बत के रास्ते कितने भी मखमली क्यो ना हो…
खत्म तन्हाई के खंड़हरो मेँ ही होते है….!!
अपनी कीमत उतनी रखिए
अपनी कीमत उतनी रखिए, जितनी अदा हो सके
अगर अनमोल हो गए तो तनहा हो जाओगे..!!
मैंने आंसू को
मैंने आंसू को समझाया, भरी महफ़िल में ना आया करो,
आंसू बोला, तुमको भरी महफ़िल में तन्हा पाते है,
इसीलिए तो चुपके से चले आते है…